Dehli-NCR: में फिर लौटा प्रदूषण का संकट, क्या इस बार 'स्मॉग' से मिलेगी मुक्ति?

एक व्यापक विश्लेषण: स्मॉग की चादर, स्वास्थ्य पर खतरा और स्थायी समाधान की तलाश

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) दिल्ली एक बार फिर धुएं और जहरीली हवा के घने आवरण (Smog Cover) में लिपटा हुआ है। हर साल, अक्टूबर से फरवरी के महीनों के दौरान, यह शहर दुनिया के सबसे प्रदूषित शहरों की सूची में शीर्ष पर पहुँच जाता है, जो यहाँ रहने वाले लाखों लोगों के स्वास्थ्य और जीवन की गुणवत्ता के लिए एक गंभीर खतरा है। यह सिर्फ एक मौसमी घटना नहीं है, बल्कि एक जटिल, बहुआयामी संकट है जिसके मूल में शहरीकरण, कृषि पद्धतियाँ और कमजोर पर्यावरणीय शासन (Environmental Governance) है।

इस विस्तृत लेख में, हम इस प्रदूषण संकट के इतिहास, इसके मुख्य कारणों, मानव स्वास्थ्य पर इसके भयावह प्रभावों, सरकार द्वारा उठाए गए कदमों और एक स्थायी समाधान की दिशा में आगे बढ़ने के लिए आवश्यक कदमों का गहन विश्लेषण करेंगे।

I. संकट का इतिहास: कब और कैसे शुरू हुई यह समस्या?

दिल्ली में प्रदूषण का संकट अचानक नहीं आया है। 1990 के दशक में, औद्योगिक इकाइयों से निकलने वाले काले धुएं और पुराने डीज़ल वाहनों की भरमार ने दिल्ली की हवा को दूषित करना शुरू किया था।

A. सुप्रीम कोर्ट का हस्तक्षेप (Early Interventions)

CNG क्रांति (2002): सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक आदेशों के बाद, दिल्ली ने सार्वजनिक परिवहन (बसें, टैक्सी, ऑटो) को डीज़ल से कंप्रेस्ड नेचुरल गैस (CNG) में बदल दिया। इससे हवा की गुणवत्ता में अस्थायी सुधार हुआ था।

उद्योगों का स्थानांतरण: कई प्रदूषण फैलाने वाले उद्योगों को दिल्ली से बाहर NCR क्षेत्रों में स्थानांतरित कर दिया गया, जिससे शहर के भीतर की हवा कुछ हद तक बेहतर हुई।

B. नए कारक और समस्या की वापसी (The Return of Smog)

2010 के बाद, स्थिति फिर से बिगड़ने लगी। इस बार, प्रदूषण के कारक बदल गए थे:

तेज़ शहरीकरण: NCR क्षेत्र में बेतहाशा निर्माण कार्य और बुनियादी ढाँचे के विकास ने धूल (Dust) को एक प्रमुख प्रदूषक बना दिया।

वाहनों की संख्या में वृद्धि: निजी वाहनों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि हुई, जो पुरानी कारों को हटाने के सरकारी प्रयासों को बेअसर कर रही थी।

अंतर-राज्यीय कारक: पंजाब और हरियाणा में धान की कटाई के बाद बड़े पैमाने पर पराली जलाना (Stubble Burning) एक नया और मौसमी संकट बनकर उभरा।


II. प्रदूषण के मुख्य कारण: विज्ञान और सांख्यिकी

दिल्ली के प्रदूषण को मुख्यतः कणिका तत्वों (Particulate Matter), विशेष रूप से PM_{2.5} और PM_{10} के अत्यधिक उच्च स्तर से मापा जाता है। ये छोटे कण फेफड़ों और रक्तप्रवाह में प्रवेश कर सकते हैं।

A. स्थानीय बनाम क्षेत्रीय योगदान

प्रदूषण के कारणों को दो मुख्य भागों में बाँटा जा सकता है:

1. स्थानीय कारक (Local Factors - 60% योगदान)

2. क्षेत्रीय कारक (Regional Factors - 40% योगदान)

B. कणिका तत्वों की प्रकृति (PM_{2.5} और PM_{10})

PM_{2.5} कण इतने छोटे होते हैं (मानव बाल की चौड़ाई का लगभग 1/30वाँ हिस्सा) कि ये सीधे फेफड़ों के एल्वियोली (Alveoli) तक पहुँचकर रक्तप्रवाह में मिल जाते हैं। वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) जब 400 से ऊपर जाता है, तो यह 'गंभीर' श्रेणी में आ जाता है, जो स्वस्थ लोगों को भी बीमार कर सकता है।


III. मानव स्वास्थ्य पर भयावह प्रभाव: एक मूक महामारी

प्रदूषण को अक्सर एक "मूक महामारी" (Silent Epidemic) कहा जाता है क्योंकि इसके प्रभाव धीरे-धीरे लेकिन घातक होते हैं।

A. श्वसन और हृदय संबंधी रोग (Respiratory and Cardiovascular Diseases)

अस्थमा और ब्रोंकाइटिस: प्रदूषित हवा फेफड़ों की कार्यक्षमता को कम करती है, जिससे अस्थमा के दौरे और क्रोनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD) के मामले बढ़ते हैं।

हृदय रोग और स्ट्रोक: PM_{2.5} रक्त में सूजन पैदा कर सकता है, जिससे दिल का दौरा और स्ट्रोक का खतरा बढ़ जाता है।

समय से पहले मौत: कई अध्ययनों से पता चलता है कि प्रदूषण के कारण दिल्ली के निवासियों की जीवन प्रत्याशा (Life Expectancy) में कई साल की कमी आई है।

B. बच्चों और गर्भवती महिलाओं पर विशेष खतरा

बच्चों के फेफड़ों का विकास: बचपन में जहरीली हवा के संपर्क में आने से बच्चों के फेफड़ों का सामान्य विकास बाधित होता है।

संज्ञानात्मक हानि (Cognitive Impairment): कुछ शोध बताते हैं कि अत्यधिक प्रदूषण बच्चों के संज्ञानात्मक विकास और सीखने की क्षमता को भी प्रभावित कर सकता है।

जन्म दोष: गर्भवती महिलाओं में प्रदूषण के संपर्क में आने से समय से पहले प्रसव (Preterm Birth) और कम वजन के बच्चे पैदा होने का खतरा बढ़ जाता है।

स्वास्थ्य चेतावनी: जब AQI 'गंभीर' स्तर पर हो, तो मास्क (N95/N99) का उपयोग करना और घर के अंदर एयर प्यूरीफायर (Air Purifier) का इस्तेमाल करना अनिवार्य हो जाता है, खासकर कमजोर प्रतिरक्षा वाले लोगों के लिए।


IV. सरकारी प्रतिक्रिया और GRAP का क्रियान्वयन

इस संकट से निपटने के लिए, केंद्र और राज्य सरकारों ने मिलकर काम करने की कोशिश की है। ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP) प्रदूषण की गंभीरता के आधार पर लागू किए गए कदमों का एक सेट है।

A. ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान (GRAP)

GRAP को चार चरणों में लागू किया जाता है:

B. चुनौतियों और न्यायालय की भूमिका

GRAP के कार्यान्वयन में कई चुनौतियाँ हैं:

अंतर-राज्यीय समन्वय: पराली जलाने जैसे मुद्दों पर विभिन्न राज्यों के बीच समन्वय की कमी।

प्रवर्तन (Enforcement): प्रतिबंधों को सख्ती से लागू करने में स्थानीय एजेंसियों की ढिलाई।

सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: निर्माण कार्यों पर रोक से दिहाड़ी मजदूरों की आय पर सीधा असर पड़ता है।

सुप्रीम कोर्ट और नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) लगातार सरकार को जवाबदेह ठहराते रहे हैं, जिससे इस समस्या को प्राथमिकता मिली हुई है।


V. स्थायी समाधान की ओर: 5-सूत्रीय कार्य योजना

प्रदूषण से स्थायी मुक्ति पाने के लिए, हमें केवल मौसमी प्रतिबंधों पर निर्भर रहने के बजाय दीर्घकालिक और बहु-क्षेत्रीय रणनीति की आवश्यकता है।

1. पराली का कुशल प्रबंधन (Stubble Management)

यह सबसे बड़ी मौसमी चुनौती है।

तकनीकी हस्तक्षेप: किसानों को हैप्पी सीडर (Happy Seeder) और सुपर सीडर जैसी मशीनें मुफ्त या भारी सब्सिडी पर उपलब्ध कराना।

आर्थिक समाधान: पराली को थर्मल पावर प्लांटों और बायो-गैस संयंत्रों में ईंधन के रूप में उपयोग करने के लिए एक मजबूत बाज़ार बनाना। इससे किसानों को पराली जलाने के बजाय बेचने का प्रोत्साहन मिलेगा।

फसल विविधीकरण: धान (Rice) के बजाय कम पानी वाली और कम पराली उत्पन्न करने वाली वैकल्पिक फसलों को बढ़ावा देना।

2. परिवहन क्षेत्र का परिवर्तन (Transport Transformation)

इलेक्ट्रिक वाहन (EV) क्रांति: EV चार्जिंग इंफ्रास्ट्रक्चर को तेजी से बढ़ाना और इलेक्ट्रिक दोपहिया (Two-wheelers) और तिपहिया (Three-wheelers) वाहनों के लिए सब्सिडी जारी रखना।

सार्वजनिक परिवहन का सुदृढ़ीकरण: मेट्रो और बस नेटवर्क का विस्तार करना ताकि लोग निजी वाहनों का उपयोग कम करें।

पुरानी कारों को हटाना: 15 साल से अधिक पुराने पेट्रोल और 10 साल से अधिक पुराने डीज़ल वाहनों को स्क्रैप (Scrap) करने की नीति को सख्ती से लागू करना।

3. धूल और निर्माण नियंत्रण (Dust and Construction Control)

जीरो टॉलरेंस: सभी निर्माण स्थलों पर अनिवार्य रूप से एंटी-स्मॉग गन (Anti-Smog Gun), हरे जाल (Green Net) और व्हीकल वॉश की सुविधाएँ होनी चाहिए। नियमों का उल्लंघन करने वाली साइटों पर भारी जुर्माना लगना चाहिए।

सड़कों की यांत्रिक सफाई: वैक्यूम क्लीनर लगे वाहनों (Mechanical Vacuum Cleaners) से सड़कों की नियमित सफाई।

4. औद्योगिक प्रदूषण पर नियंत्रण

स्वच्छ तकनीक अनिवार्य: ईंट-भट्ठों को ज़िग-ज़ैग तकनीक (Zig-Zag Technology) जैसी स्वच्छ प्रौद्योगिकियों में तेज़ी से बदलना।

Piped Natural Gas (PNG): उद्योगों को कोयले और ईंधन तेल के बजाय पीएनजी के उपयोग के लिए प्रोत्साहित करना।

5. नागरिक जुड़ाव और जागरूकता (Citizen Engagement)

जन आंदोलन: प्रदूषण से निपटने के प्रयासों को एक जन आंदोलन बनाना, जहाँ हर नागरिक अपने कार्बन फुटप्रिंट को कम करने की जिम्मेदारी ले।

जागरूकता अभियान: स्कूलों और समुदायों में प्रदूषण के दुष्प्रभावों और समाधानों के बारे में जागरूकता बढ़ाना।

निष्कर्ष: क्या दिल्ली को बचाना संभव है?

दिल्ली का प्रदूषण संकट केवल एक पर्यावरणीय समस्या नहीं है; यह एक सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य संकट है जो हमारी पीढ़ी के भविष्य को खतरे में डाल रहा है।

इस समस्या से पार पाने के लिए हमें त्वरित और स्थायी दोनों तरह के कदमों की आवश्यकता है। केवल प्रतिबंध लगाना काफी नहीं है; हमें अपनी ऊर्जा, परिवहन और कृषि प्रणालियों में संरचनात्मक बदलाव (Structural Changes) लाने होंगे।

अगर सरकार, किसान, उद्योग और आम नागरिक मिलकर, राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ काम करें, तो साँस लेने लायक हवा का लक्ष्य हासिल करना असंभव नहीं है। दिल्ली को 'स्मॉग राजधानी' के बजाय एक 'स्वच्छ राजधानी' के रूप में देखना ही इस पीढ़ी का सबसे बड़ा दायित्व है।


एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ